पूस की रात
पूस की रात !¡!¡ अंधेरा गहराता जा रहा था।कुतों के भौंकने की आवाज़ हर ओर से आ रही थी।रामू खेत की पगडंडी से घर की और तेज़ी से बढ़ता जा रहा था।
रात के वक्त कोई साधन नहीं मिला ,
सुबह गन्ना, " चीनी मिल" 'में पहुंचाना था ,पर्ची आयी थी उसके नाम की,इसी कारण उसे बहन के रोकने पर भी आना पड़ा था।
रामू अपने भांजे के मुंडन में गया था,आयोजन खत्म होते रात हो गई थी।घर पहुंचने वाला ही था कि
तभी अचानक एक स्त्री की सिसकने की आवाज उस रात की नीरवता में गूंज रही थी।
रामू उत्सुकतावस आवाज की दिशा में चल पड़ा।
अंधेरे में ,दूर से एक गठरी की तरह आकृति दिखाई पड़ी।
नजदीक जाकर देखा तो एक स्त्री ठंढ में खुद को साड़ी से लपेटे ठिठुरती , सिसकती दिखाई पड़ी।
रामू के जेहन में बहुत सी बात आने लगी _ कौन है ये स्त्री यहां क्यों बैठी है?
थोड़ा और नजदीक आकर उसने पूछा_कौन हैं आप ?,और रो क्यों रही हैं?
युवती ने सर उठाया,जैसी अंधेरी रात में बिजली कौंधी हो, बला की खूबसूरत ,दूध सी उजली ,देख कर कुछ देर रामू के मुंह से आवाज़ ही नहीं निकली।
मैं बहुत दुखियारी हूं ,मेरे पति ने मुझपर लांछन लगा ,रात में धक्के मार कर निकाल दिया।जबकि उसे दूसरी स्त्री को लाना था,मेरा कोई नहीं इस दुनिया में,भटकते -भटकते में यहां आ गई, अब मैं कहां जाऊं ..?..और फिर जोर जोर से रोने लगी।
रामू उहापोह की स्थिति में आ गया,कैसे रात के अंधेरे में अकेली स्त्री को छोड़ देता,और घर ले जाने पर मां और समाज को क्या कहेगा।
आखिर उसके दिल ने उस स्त्री को घर ले जाने को प्रेरित किया।
उसने
बिना आगे पीछे सोचे समझे,कहा _,तुम मेरे घर चलो। जब तक कोई व्यवस्था न हो जाए। और वह उसको लेकर घर पहुंचा।
रामू को किसी युवती के साथ आया देख मां भौंचक्की रह गई,रामू ने बताया मां अब से यहीं रहेगी ।हड़बड़ी में उसने तो उसका नाम भी नहीं पूछा था,"तुम्हारा नाम क्या है"?
"जी ,सुगंधा।
रामू की शादी की उम्र हो चुकी थी,लेकिन बहुत आमदनी नहीं थी, गन्ना वह बंटाई पर लगाता था,एक दो बीघा ,मालिक के खेत का। बहुत कम आय थी ।
सुगंधा ने घर में आते ही सबकुछ संभाल लिया।रामू की मां को कुछ करने नहीं देती थी।
उसने अपने कुछ गहने रामू को दिए और बेचने को कहा,पुराने गहने थे रामू को उम्मीद से ज्यादा पैसे मिले।
सुगंधा ने उस पैसे से रामू को खेत खरीदने को कहा।
अब रामू आजाद था ,उसके अपने खेत थे ,वो अपने मन मुताबिक फसल लगा सकता था।
सुगंधा अब उसे खेती में भी सलाह देने लगी,वह बताती कि कौन सी फसल लगानी चाहिए ,जिससे आमदनी हो।
सुगंधा की सलाह से रामू ने औषधीय पौधे जैसे सर्पगंधा,ब्राह्मी,अश्वगंधा लगवाए।
खूब आमदनी हुई, दवा बनाने वाली कंपनियां उसे खरीद लेती ।रामू दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था।
रामू और सुगंधा बहुत पास आ चुके थे,वे पति पत्नी की तरह ही रह रहे थे।
गांव में उनके रिश्ते को लेकर कानाफूसी हो रही थी।
आखिर सीताराम की मां ने रामू की मां से पूछ ही लिया_क्यों बहन तुम तो कहती थी ,दुखियारी है ,कुछ दिन रह कर चली जाएगी ,वो तो तुम्हारे घर ही टिक गई।
रामू से तो कुछ ज्यादा ही चिपकी रहती है ?
रामू की मां को ये सब सुनना अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन क्या कहती ।आखिर किस किस को जवाब देती,इसलिए रामू की मां ने इस संबंध को शादी का नाम देने को सोची।
लेकिन एक बात उसे रोज़ खटकती थी ,की सुगंधा रात के करीब 1 बजे निकल कर कहीं जाती थी।उसने पूछा था,तो सुगंधा कहती " माता जी ,मुझे नींद नहीं आ रही थी ,इसलिए बाहर खुली हवा में चली जाती हूं।
लेकिन गांव में आजकल पशुओं के मौत की खबर आ रही थी।
रामू की मां पंडित जी के पास गई,दोनों की शादी की तिथि निकलवाने,पंडित जी घर पर नहीं थे।रामू की मां ने पंडित जी को अपने घर भेजने के लिए पंडिताइन से कह दिया।
पंडित जी जब आए तो उन्हें ,घर बहुत अजीब लगा ,नकारात्मक ऊर्जा के कारण उनका दम घुटने लगा।
इतने में सुगंघा आई,पंडित जी ने उसे देखा और रामू की मां को अपने घर आने को कहा।
घर जाते समय पंडित जी काफी डरे थे,जैसे उन्होंने कोई भूत देख लिया हो।
रामू की मां अगले दिन आयी ,पंडित जी ने बताया वो तुम्हारी बहू नहीं हो सकती ,क्योंकि वो कर्ण पिशाचिनी है,।
रामू की मां का मुंह खुला का खुला रह गया।
अब ............
क्या होगा????
रामू भी आजकल बहुत कमजोर दिख रहा था।
मां ने उपाय पूछा _" कैसे मुक्ति मिलेगी मेरे रामू को"।
पंडित जी ने उपाय बताया, गांव से दूर पीपल के वृक्ष के नीचे एक सिद्ध संत रहते हैं,वहीं कुछ मदद कर सकते हैं।
"बाबा मेरा एक ही पुत्र है ,हमे मुक्ति दिला दो"
_ यह कह रामू की मां बाबा के चरणों में गिर कर गिड़गिड़ाने लगी।
बाबा ने ढांढस बंधाया और घर आने का वादा किया।
घर पहुंचते पिशचिनी ने रामू की मां ,को अपना असली रूप दिखाया,"बुढ़िया तू मुझे भगाएगी " अब तू नहीं बचेगी।
और उसने अपनी उंगली घुमाई ,रामू की मां गोल गोल घूमने लगी, उसे चक्कर आने लगे।
बचाओ बचाओ, की चीख पुकार से वातावरण गूंज उठा।
लेकिन पिशाचिनी अट्टहास करती हुई,कह रही थी,"तेरे बेटे को मै लेकर जाऊंगी।
वो मेरा है।"
तभी बाबा जी का प्रवेश हुआ।इतनी शांति और ओज था उनके चेहरे पर कि पिशाचिनी डर गई,।
लेकिन साहस करके उनसे अनुनय विनय करने लगी ,कहने लगी " मैंने इनका कोई अनिष्ट नहीं किया ," बाबा।
लोग मुझे सिद्ध कर पाते हैं अपने कार्यसिद्धि के लिए ,लेकिन मै रामू से आसक्त हो आयी ,मुझे यही रहने दो।
लेकिन बाबा ने कहा ,तुम जाओ जहां तुम्हारी जरूरत हो और इन्हे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं।
और पवित्र जल छिड़क दिया ,जिससे उसका शरीर जलने लगा ,और उसे जाना पड़ा।
इस तरह रामू और उसकी मां को एक पिशाचिनी से मुक्ति मिली।
समाप्त
Zakirhusain Abbas Chougule
16-Nov-2021 12:39 AM
Nice
Reply
Seema Priyadarshini sahay
15-Nov-2021 11:47 PM
बहुत खूबसूरत कहानी मैम❤️❤️
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Niraj Pandey
15-Nov-2021 09:22 PM
बहुत ही शानदार कहानी👌
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